महाराष्ट्र में शिवसेना ने बुधवार को ट्रेड यूनियनों के ‘भारत बंद’ के आह्वान को समर्थन दिया और अपनी नीतियों और फैसलों के लिए केंद्र सरकार को फटकार लगाई। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में कहा कि भाजपा सरकार के पहले शासन के दौरान, उद्योग और श्रमिक वर्ग उनके विमुद्रीकरण और माल और सेवा कर (जीएसटी) के कारण बुरी तरह प्रभावित हुए थे। महाराष्ट्र के पीडब्ल्यूडी मंत्री अशोक चव्हाण ने कहा कि राज्य सरकार भारत बंद की विभिन्न ट्रेड यूनियनों का समर्थन करती है, केंद्र सरकार एक श्रमिक विरोधी सरकार है।
देश के सभी 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा भारत सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के विरोध में संगठित होने के साथ-साथ सभी 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा बुलाए गए ‘भारत बंद’ के कारण कई स्थानों पर परिवहन और बैंकिंग सेवाएं प्रभावित होने की संभावना है।
सीटू, इंटक सहित दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने मांग के 12 सूत्रीय चार्टर के साथ हड़ताल का आह्वान किया है। हालांकि ट्रेड यूनियन भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) हड़ताल में हिस्सा नहीं लेगा। संपादकीय में कहा गया है कि लोगों को उम्मीद थी कि हालात सुधरेंगे, लेकिन ‘मौजूदा सरकार को बने छह महीने बीत चुके हैं लेकिन न तो उद्योगों में कोई सुधार हुआ है और न ही मजदूरों की हालत में।’
क्यों हो रहा है भारत बंद?
केंद्र सरकार की आर्थिक और जन विरोधी नीतियों के खिलाफ ट्रेड यूनियनों ने हड़ताल का आयोजन किया है इसके साथ ही लेबर लॉ, स्टूडेंट यूनियन शिक्षण संस्थानों हुई फीस वृद्धि और किसान यूनियन पूरी तरह से कर्ज माफ न किये जाने का विरोध कर रहे हैं।
क्या कहना है ट्रेड यूनियनों का
ट्रेड यूनियनों का कहना है कि इस हड़ताल के बाद हम और कई कदम उठाएंगे और सरकार से जन विरोधी, श्रमिक विरोधी और राष्ट्रर विरोधी नीतियों को वापिस लेने की मांग करेंगे।
जानें सरकार ने क्या कहा
भारत बंद को लेकर केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर उन्होंने इस हड़ताल का समर्थन किया तो वे इसका नतीजा भुगतने के लिए तैयार रहें। अगर कोई कर्मचारी हड़ताल में शामिल हुआ तो उसका वेतन काटने के अलावा उसपर अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की जा सकती है। सभी विभागों को दिये गये आदेश में केंद्र सरकार ने कहा कि ऐसा कोई भी सांविधित प्रावधान नहीं है जो कर्मचारियों को हड़ताल पर जाने का अधिकार देता हो।